स्वामी विवेकानंद के दृष्टिकोण से जीवन का सार
- June 4, 2025
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मानव जीवन ईश्वर की अनुपम देन है। यह केवल श्वासों की गणना नहीं, वरन् उद्देश्यपूर्ण साधना का पथ है। जब कोई बालक संसार में पदार्पण करता है, तो
मानव जीवन ईश्वर की अनुपम देन है। यह केवल श्वासों की गणना नहीं, वरन् उद्देश्यपूर्ण साधना का पथ है। जब कोई बालक संसार में पदार्पण करता है, तो
मानव जीवन ईश्वर की अनुपम देन है। यह केवल श्वासों की गणना नहीं, वरन् उद्देश्यपूर्ण साधना का पथ है। जब कोई बालक संसार में पदार्पण करता है, तो वह असीम संभावनाओं की गठरी लिए आता है। परंतु उन संभावनाओं को कर्म में रूपांतरित करना ही उसका वास्तविक धर्म होता है। स्वामी विवेकानंद, जिनकी वाणी में वेदों की गंभीरता और युवाओं में जोश भरने की शक्ति थी, उन्होंने जीवन को जीने की कला सिखाई – आत्मबल, सेवा, और साधना के माध्यम से।
आध्यात्मिक गुरू पंडित चन्द्रकान्त शुक्ला
स्वामी विवेकानंद कहते हैं –
“उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।”
यह केवल एक उद्घोष नहीं, अपितु जीवन का महामंत्र है। उन्होंने सदैव आत्मविश्वास और स्वावलंबन पर बल दिया। उनका मानना था कि ईश्वर की उपासना से पूर्व, मनुष्य की सेवा करनी चाहिए, क्योंकि “जीव ही शिव है”।
उनके अनुसार धर्म केवल मंदिरों की मूर्तियों में नहीं, वरन् भूखे को अन्न देने, अशिक्षित को शिक्षा देने और दुखी को ढाढ़स बंधाने में है। धर्म का सार मनुष्य में निहित करुणा, सहानुभूति और परोपकार में है।
“जिस दिन तुम दूसरों के दुःख से दुःखी होने लगो, उसी दिन तुम्हारे जीवन का सच्चा आरंभ होता है।”
स्वामी जी ने ब्रह्मचर्य, संयम और अनुशासन को जीवन की आधारशिला बताया। उनका विश्वास था कि चरित्र निर्माण ही राष्ट्र निर्माण का प्रथम चरण है।
“एक महान चरित्र ही सच्चे पुरुषार्थ का प्रतीक होता है।”
उन्होंने भारतवर्ष की आत्मा को जगाया, सोई हुई चेतना को झकझोरा। युवाओं को संबोधित करते हुए कहा –
“मेरे प्रिय नवयुवकों! लोहे के समान दृढ़ बनो। अग्नि के समान तपो। अपने लक्ष्य को पहचानो और उसे प्राप्त करने के लिए तन-मन-प्राण अर्पित कर दो।”
स्वामी विवेकानंद का जीवन स्वयं एक ज्वलंत उदाहरण था – निर्भीकता का, सेवा का, तपस्या का और उच्चतम चेतना का। वे कहते थे –
“हम वही बनते हैं, जो हम सोचते हैं। अतः अपने मन में महान विचारों का सिंचन करो, दिन-रात उसी का चिंतन करो, वही तुम्हारा स्वप्न बन जाए, वही जीवन बन जाए।”
उपसंहार (Conclusion)
स्वामी विवेकानंद का जीवन हमें सिखाता है कि मानव जीवन व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। इसे आत्म-विकास, सेवा और सत्य की साधना में लगाना चाहिए। जब हम अपने भीतर की अपार शक्ति को पहचान लेते हैं, तब कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती।
आज आवश्यकता है कि हम उनकी वाणी को केवल स्मरण न करें, अपितु जीवन में धारण करें। यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी उस महायोगी को, जिसने संपूर्ण मानवता को अपने विचारों से आलोकित कर दिया।