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पुण्य, पवित्रता और मोक्ष का दिव्य पर्व गंगा दशहरा

  • June 5, 2025
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भारतीय संस्कृति में नदियों को माँ का दर्जा प्राप्त है, और उनमें भी माँ गंगा को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। गंगा दशहरा वह पावन पर्व है जब माँ

पुण्य, पवित्रता और मोक्ष का दिव्य पर्व गंगा दशहरा


भारतीय संस्कृति में नदियों को माँ का दर्जा प्राप्त है, और उनमें भी माँ गंगा को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। गंगा दशहरा वह पावन पर्व है जब माँ गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। यह पर्व ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह पर्व 5 जून को श्रद्धा व वैदिक विधि से मनाया जा रहा है।

आध्यात्मिक गुरु पं. चन्द्र कान्त शुक्ल जी

गंगा दशहरा का धार्मिक महत्व

पुराणों के अनुसार, राजा भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर माँ गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुईं। उनका वेग इतना तीव्र था कि भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में समाहित कर पृथ्वी पर उतरने योग्य बनाया। यह अवतरण दशमी तिथि को हुआ, और यही दिन गंगा दशहरा कहलाया।

“दशहरा” शब्द का अर्थ है — दश (10) पापों का हरण करने वाला दिन। इस दिन गंगा स्नान व पूजन से व्यक्ति के मन, वचन, कर्म से हुए दस प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं।

गंगा दशहरा की पूजन विधि

इस दिन प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें। यदि संभव हो तो गंगा नदी में स्नान करें, अन्यथा गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करें।

मुख्य पूजन विधि:

  1. गंगाजल या माँ गंगा की प्रतिमा/चित्र की स्थापना करें
  2. रोली, अक्षत, पुष्प, दीपक व नैवेद्य अर्पित करें
  3. मंत्र जाप करें —
    “ॐ नमः शिवाय”
    “ॐ गंगे नमः”
  4. गंगा स्तोत्र या गंगा आरती का पाठ करें
  5. घर में गंगाजल का छिड़काव करें
  6. जरूरतमंदों को पंखा, मट्ठा, शर्बत, वस्त्र व अन्न का दान करें

गंगा दशहरा के विशेष लाभ

गंगा स्नान व पूजन से दस प्रकार के पापों का क्षय होता है।
कुंडली के दोषों, विशेषकर पितृ दोष व शनि दोष के निवारण के लिए अत्यंत शुभ दिन। गर्मी जनित रोगों से राहत के लिए जल व छाया दान विशेष फलदायी होता है।
इस दिन का पूजन व दान पुण्य कई गुना अधिक फलदायी माना गया है।
मोक्ष की प्राप्ति, मानसिक शांति और पारिवारिक सुख हेतु अति उत्तम दिन।

उपसंहार:

गंगा केवल जल नहीं, वह भारतीय चेतना, संस्कृति व आध्यात्म का स्त्रोत हैं। गंगा दशहरा हमें न केवल पवित्रता की ओर ले जाता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि हम प्रकृति व संस्कृति के रक्षक बनें।

इस शुभ अवसर पर हम सब यह संकल्प लें कि माँ गंगा व समस्त नदियों की शुद्धता बनाए रखने हेतु अपना योगदान देंगे, तथा आत्मकल्याण व लोकमंगल की भावना से यह पर्व मनाएँगे।

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