माया के टांकों से सुंदर बनता है संसार- डॉ नरेंद्र नाथ व्यास जी
May 26, 2025
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Jagrat Times, Kanpur/ रामपुर कुंदहा सुजानगंज जौनपुर में चल रहे नवकुंडीय हवनात्मक शतचंडी महायज्ञ एवं श्रीमद् देवी भागवत कथा में शिवशक्तिधाम हालोली पालघर महाराष्ट्र से आये हुए आचार्य
Jagrat Times, Kanpur/ रामपुर कुंदहा सुजानगंज जौनपुर में चल रहे नवकुंडीय हवनात्मक शतचंडी महायज्ञ एवं श्रीमद् देवी भागवत कथा में शिवशक्तिधाम हालोली पालघर महाराष्ट्र से आये हुए आचार्य पंकज जी महराज ने प्रथम दिवस देवी भागवत माहात्म्य के प्रसंग में बताया कि आद्याशक्ति जगदम्बा के मुखारविंद से पुराणवांमय अर्दधश्लोकी रूप में प्रकट हुआ, महर्षि वेदव्यास जी अपने अयोनिज पुत्र शुकदेव जी को गृहस्थीधर्म की श्रेष्ठता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि भरत जी वन में फंसे गये,प्रह्लाद को घर से ही मुक्ति मिली,अतः रागी और विरागी दोनों से ऊपर उठकर वीतरागी बनना चाहिए,गृहस्थी धर्म की श्रेष्ठता सिद्ध करने हेतु व्यास जी ने शुकदेव जी को राजा जनक के पास भेजा,तब श्री शुकदेव जी ने विवाह करके चार पुत्र और एक कन्या को जन्म दिया,सामाजिक सौहार्द की दृष्टि से छः प्रकार के पुत्र बताया गया है,औरत अर्थात स्ववीर्य से उत्पन्न,क्षेत्रज अर्थात नियोग से,गोलक अर्थात अन्य पुरुष से,अपने जीते जी दूसरे से उत्पन्न,देवर से,कन्या अवस्था में,,खरीदा हुआ,फैंका हुआ प्राप्त दत्तक अर्थात गोंद लिया हुआ,क्योंकि समस्त संसार एक ही सत्ता जगदम्बा की सन्तान है,धर्मराज युधिष्ठिर और विदुर दोनों ही धर्म के अवतार हैं पर एक तरफ धर्म की चलती है और दूसरी तरफ धर्म को चलाने का प्रयास किया जाता है,नारद जी का मोह
प्रसंग के अवसर पर डॉक्टर नरेंद्र नाथ व्यास जी ने बताया काम और क्रोध पर विजय प्राप्त करने के बाद भी नारद जी के भीतर अहंकार था और वह अंहंकार उनको बंदर के मुंह वाला बना दिया,इसलिए संसार के समस्त मनुष्य एक ही भगवती की संतान हैं,अतः धन पद और प्रतिष्ठा,मानआने पर अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि समय का चक्र परिवर्तन शील होता है,दुर्योधन ने एक बार दुर्वासा की खूब सेवा किया और द्वेष वश जंगल में रह रहे पांडवों के पास भेज दिया कि 1000 शिष्य मंडली के साथ दुर्वासा जी पहुंचेंगे भोजन नहीं मिलेगा लेकिन पांडव तो भगवान के भक्त थे और पांडवों के पास अक्षय पात्र था जो जब तक द्रौपदी भोजन नहीं कर लेती थी पर्याप्त भोज्य सामग्री प्रदान करने में समर्थ था परंतु दुर्योधन ने दुर्वासा जी से कहा था कि द्रौपदी अकेली बहुत परेशान होगी इसलिए कृपया आप उसके भोजन कर लेने के बाद ही पहुंचिएगी ताकि उसे कष्ट ना हो और जब दुर्वासा जी वहां पहुंचे और स्नान करने के लिए गए,इस समय द्रौपदी ने कृष्ण को पुकारा और कृष्ण भगवान ने आकर कहा कि मुझे भूख लगी जल्दी से वह अक्षय पात्र लाओ और उसमें एक शाक का पत्ता चिपका हुआ था जिसे भगवान ने उसे मां भगवती को समर्पित करके ग्रहण किया,
दुर्वासा जी को शिष्य मंडली के सहित डकारे आने लगी,और वह चुपके से भाग निकले क्योंकि वह जानते थे पांडव भगवान के भक्त हैं और इतना पर्याप्त भोजन अन्न बन चुका होगा तो हमें भगवान के कोप का भाजन होना पड़ सकता है और जाते-जाते दुर्योधन की चाल को समझ करके श्राप दिए कि तुम्हारी हार सुनिश्चित है इसलिये द्वेष वश किया गया साधना भी शाप का अधिकारी बनाता है,शुंभ निशुंभ,चंडी मुंड,रक्तबीज आदि वध के प्रसंग में डा नरेंद्र नाथ व्यास जी ने कहा कि हमारे नेत्र ही धूम्र विलोचन हैं जो हमें हमेशा भटकाते रहते हैं और इस चुगली की मारी चुगली कसे युक्त मन ही चंद मुंड के समान है,क्रोध और मोहृ ही शोणित बीज हैं क्योंकि एक शांत होता है तो दूसरा उभरता है काम में व्यवधान आता है तो क्रोध स्वत आ जाता है और क्रोध शांत होता है तो लोभ आ जाता है, महिषासुर अभियान के स्वरूप है जो पल-पल दुख देता रहता है,आपस में परिवार में बैर कराता है और धोखा दिलाता रहता है,सुख और दुख तो मानके विषय हैं अगर हम इनसे ऊपर उठकर के मां भगवती के चरणों में अपनी शरणागति लगा दे तो कल्याण हो जाएगा,वैसे भी दुनिया एक से नहीं चलती, इसलिए जगत जननी ने एकोहं बहुश्याम विचार करके अपने को ही देव दानवों और सृष्टि के रूप में परिणत कर दिया,जैसे शुद्ध स्वर्ण के सोने का आभूषण बनाना है तो टांके लगाने पड़ते हैं वैसे ही संसार को सुंदर बनाने के लिए माया के टांके लगते हैं, सुख-दुख,पाप पुण्य,दिन रात,यश अपयश,सुजाति कुजाति,रंक राजा, काशी मगहर,रात दिन,स्वर्ग नरक अनुराग विराग,निगम और आगम गुण और दोष अर्थात द्वंदात्मक विषयों से युक्त है, संसार लेकिन जब हम पूरे संसार को पूरे राष्ट्र को एक मान करके एक ही भगवती की संतान मान करके लोक कल्याण में रत हो जाते हैं तो हम मां भगवती की कृपा की पात्र बनते हैं,
भगवान कृष्ण ने कहा कि मुझे किसी भी धार्मिक कार्य करने की आवश्यकता नहीं है परंतु मैं काम इसलिए करता हूं की श्रेष्ठ पुरुष जैसा आचरण करते हैं सामान्य जन उसी का अनुकरण करते हैं,इसलिए मैं संध्या,तर्पण, प्राणायाम और लोक कल्याण में रत रहता हूं,महाराष्ट्र हलोली शिव शक्ति धाम पीठाधीश्वर आचार्य पंकज के निर्देशन में नव कुंडीय हवनात्मक शतचंडी महायज्ञ का आयोजन किया गया है,जिसमें दूर-दूर से लोग आकर के आहुति प्रदान कर रहे हैं और श्रीमद् देवी भागवत पुराण का पारायण और कथा सत्संग भी चल रहा है,27-05-202 5 को यज्ञ की पूर्णाहुति होगी।करा सत्संग के इस अवसर पर नित्य निरन्तर अन्नक्षेत्र/ भंडारे का आयोजन किया गया है,सुरेश चन्द्र तिवारी एवं पवित्री देवी के द्वारा यह पुनीत आयोजन किया गया है,मीडिया प्रकाशन हेतु राजेश शर्मा संयोजक नमामि गंगे ने आयोजित देवी भागवत कथा की जानकारी दी।