चुनौतियों को मात देकर प्रतिष्ठित काउंसलर बनी हैं दिल्ली की शीतल कौर बावा
- May 3, 2025
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-बीमारियों से जूझकर खोया आत्मविश्वास हासिल कर लिखी अपने जीवन की इबारत -पूरे विश्वास से कहा और माना, सपने तभी सच होते हैं जब हम उनके लिए काम
-बीमारियों से जूझकर खोया आत्मविश्वास हासिल कर लिखी अपने जीवन की इबारत
-पूरे विश्वास से कहा और माना, सपने तभी सच होते हैं जब हम उनके लिए काम करते हैं
-पुणे में मास कम्युनिकेशन का कोर्स करने के फैसले ने शीतल की जिंदगी पूरी तरह से बदल दी
Jagrat Times, Kanpur/ पुरानी कहावत है कि आग में तपकर ही सोना बनता है और हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी कहा था कि अगर सूरज की तरह चमकना है तो सूरज की तरह ही तपना भी होगा। कुल मिलाकर जो इंसान जीवन में कड़े संघर्ष और चुनौतियों से हार नहीं मानता है, वही जीवन में सफल होकर नई इबारत लिखता है। 12 साल की उम्र में गंभीर मिर्गी और मानसिक स्वास्थ्य से पूरी तरह से प्रभावित होने के बावजूद शीतल कौर बावा ने हार नहीं मानते हुए आज एक सफल कंटेट क्रिएटर, काउंसलर, सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर, चर्चित एंकर व मोटिवेशनल गुरु की फिजा समाज में बनाई है।
विशेष बातचीत में अपने जीवन के कड़े संघर्ष पर चर्चा करते हुए विस्तार से बताया कि सेना की पृष्ठभूमि से होने के कारण, मेरा पालन-पोषण एक प्यार भरे और अनुशासित परिवार में हुआ। लगातार स्वास्थ खराब रहने के कारण मेरा शैक्षणिक प्रदर्शन गिर गया और मैं दवाओं के कारण चिंता, नींद, मतली, त्वचा की समस्याओं और वजन बढ़ने से गंभीर बीमारियों से जूझ रही थी। फलस्वरूप इन दिक्कतों की वजह से मेरा आत्मविश्वास डगमगा गया और मुझे लोगों से बात करने में भी डर लगने लगा। मुझे परीक्षाओं के दौरान मिर्गी के दौरे पड़ते थे। मैं 9वीं कक्षा में फेल हो गई, मेरा कोई करीबी दोस्त नहीं था, मुझे बदमाशी और साथियों के दबाव का भी सामना करना पड़ा, और अक्सर खुद को पीछे छोड़ दिया।
लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी। मैंने 9वीं की परीक्षा दोबारा दी और पास हो गई। समय बदला और दवा में बदलाव के साथ मैं धीरे-धीरे शारीरिक और मानसिक रूप से बेहतर होने लगी। जब मैं 11वीं और 12वीं में पहुंचीं, तब तक मैंने कुछ सच्चे दोस्त बना लिए थे, मेरा आत्मविश्वास बढ़ रहा था, और आखिरकार मैंने मुस्कुराते हुए 12वीं पास कर ली। अपने काम में और गहराई व जानकारी बढ़ाने के लिए घर से दूर पुणे में मास कम्युनिकेशन करने का फैसला किया। इस कोर्स ने मेरी ज़िंदगी को पूरी तरह से बदल दिया। इसने मुझे एक नई पहचान और एक नई चमक दी। मैंने उसी विषय में अपनी मास्टर डिग्री भी पूरी की और 25 वर्ष की उम्र तक मैं आत्मविश्वासी, रचनात्मक और निडर बन गई।
जब मुझे ADHD का पता चला तो जिंदगी ने मेरे लिए एक और कर्वबॉल फेंका, लेकिन मैंने इसे खुद को परिभाषित नहीं करने दिया। इसके बजाय, मैंने अपनी ताकत पर ध्यान केंद्रित किया। मैंने व्यक्तित्व विकास और सॉफ्ट स्किल्स की कक्षाएं लीं और छात्रों और युवा वयस्कों को सिखाना शुरू किया कि वे अपना आत्मविश्वास और संचार कैसे सुधारें और ठीक वैसे ही जैसे मुझे एक बार ज़रूरत थी। समय के साथ, मैं एक एंकर बन गई – लाइव इवेंट होस्ट करना और दूरदर्शन पर समाचार पढ़ना आदि। खुद थेरेपी से गुज़रने के बाद, मैंने मानसिक शक्ति के वास्तविक मूल्य को समझा। मानसिक स्वास्थ्य में। मजबूत वापसी करने के बाद मैंने कोचिंग सत्र आयोजित करना शुरू किया, जिससे दूसरों को एक उज्जवल, मज़बूत और मानसिक सुदृढ़ भविष्य बनाने में मदद मिल सके। आज, मैं सकारात्मकता, जानकारी और आत्मविश्वास फैलाने के लिए एक एंकर और कंटेंट क्रिएटर के रूप में अपने सोशल प्लेटफ़ॉर्म इंस्टाग्राम का भी उपयोग करती हूं । मैं सपने देखने, खोज करने, सीखने और लगातार बढ़ने में विश्वास करती हूं। क्योंकि सपने तभी सच होते हैं जब हम उनके लिए काम करते हैं और मैं अभी भी अपने सपनों पर हर दिन काम कर रही हूं।