मानसिक मजबूती से मिलती है सफलता, उम्र तो सिर्फ़ एक पढ़ाव है : कुसुम सेधा
- April 24, 2025
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वर्षभर में कम से कम 20 मेडल लाने वाली दिल्ली की कुसुम सेधा की कहानी लोगों के लिए बहुत ही प्रेरणादायक अपनी क्षमता से अधिक और नकारात्मकता को
वर्षभर में कम से कम 20 मेडल लाने वाली दिल्ली की कुसुम सेधा की कहानी लोगों के लिए बहुत ही प्रेरणादायक
अपनी क्षमता से अधिक और नकारात्मकता को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना उनकी सफलता का राज
Jagrat Times, Kanpur/ बहुत ही पुराना और चर्चित बालीवुड गीत है…अभी तो मैं जवान हूं…इन पंक्तियों को चरितार्थ करके दिखाया है दिल्ली की 65 वर्षीय कुसुम सेधा ने। इतनी उम्र होने के बाद भी पावरलिफ्टिंग में नेशनल चैंपियन होने के साथ ही रनिंग की चर्चित एथलीट हैं। एलआईसी में कई साल काम करने के बाद रिटायर होकर 61 की उम्र से कुसुम ने रनिंग शुरू की। 100 मीटर तक रनिंग करना भी मुश्किल लगा। लेकिन अपने बुलंद हौसलों की बदौलत करीब 20 बार 5 किलोमीटर और 10 किलोमीटर रनिंग करके मेडल हासिल किए हैं।
विशेष बातचीत में कुसुम सेधा ने बताया कि एक बार 15.5 किलोमीटर भी रनिंग कर चुकी हूं और लद्दाख रन भी सितंबर 2022 में कर के आई जो की मेरा 2017 का सपना था। इसके अलावा 63 साल पूरे होने के बाद एक और उपलब्धि जो एक महीने के अभ्यास का परिणाम है मैंने 30 किलोग्राम से ज्यादा कभी नहीं उठाया था और बस एक महीने के अभ्यास से 85 किलोग्राम की डेड लिफ्ट की अपनी निजी जिंदगी के विषय में विस्तार से चर्चा करते हुए कुसुम सेधा ने बताया कि मैं ऐसे घर मे पैदा हुईं जहां की पर्दा सिस्टम था। तो लाजमी है कि ज्यादा खुलकर जीने की जिंदगी नहीं मिली। पर ससुराल बहुत अच्छी मिली जिन्होंने मुझे हर जगह बढ़ने दिया और मुझे कहीं रोक टोक नहीं की।
कुल मिलाकर कुसुम को हर चीज लेट मिली है। पढ़ाई लेट हुई शादी लेट हुई बच्चे लेते हुए और नौकरी भी लेट मिली।पर मैं निराश कभी नहीं हुई और जो मुझे मिलता रहा, मैं करती रही। ऑफिस वर्क मुझे अच्छा नहीं लगता था क्योंकि मेरा शुरू से ही खेलों की तरफ रुझान था और इसी वजह से मैंने ऑफिस में कारपोरेट की तरफ से 5 ऑल इंडिया टेबल टेनिस खेले। युवाओं को खासतौर पर युवाओं के साथ भी बुजुर्गों को भी महत्वपूर्ण सलाह देते हुए कहा कि
मेरा मानना है की सब आप के मजबूत दिमाग का कमाल होता है। आप जितना दिमाग से मजबूत होंगे उतना शरीर भी मजबूत बनाया जा सकता है। अक्सर लोग कहते है इस उम्र मे ये सब नहीं करना चाहिए पर मैं सुनती सबकी हूँ पर करती अपने मन की। हाँ ये जरूर ध्यान रखती हूँ कि अपनी क्षमता से अधिक नहीं जाती और नकारात्मकता को अपने ऊपर हावी नहीं होने देती।
मैं उस सदी और उस परिवार की महिला हूँ जहां महिला बच्चे पैदा करने, घर के काम करने, पति या ससुराल में सेवा मात्र भर के लिए होती थी। पर ससुराल इतनी अच्छी मिली कि उन्होंने मेरे हर सपने को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित और मेरा साथ दिया। जीवन एक बार मिलता है और यह बहुत खूबसूरत है। उसको नाराजगी, ईर्षा, क्रोध और बदले की भावना मे क्यूं निकाले तो इसको अपने और दूसरों के स्वास्थ्य पर ध्यान देने पर सोचे। कुसुम ने कहा कि मैं साल में कम से कम 20 मेडल तो ले ही आती हूं। किसी भी गेम में जा करके और जितना खेलती हूं उतना रिचार्ज होती हो। अक्सर लोग पूछते हैं कि आप किस से इंस्पायर होते हैं? मेरा यही जवाब होता है कि मैं अपने आपसे इंस्पायर होती हूं। मैं हमेशा खुश रहती हूं। हमेशा नई चीज़ सीखने की कोशिश में लगी रहती हूं। मेरा मानना है कि आप परेशानियों में भी एक कोई अच्छी चीज ढूंढ लेते हो तो खुश रहोगे। ऐसा नहीं है कि मुझे कभी परेशानियां नहीं आई। 43 में मेरा बहुत वेट बढ़ चुका था जिसकी वजह से मुझे घुटनों में बहुत तकलीफ हुई और दिल्ली के जाने-माने डॉक्टर शेखर अग्रवाल ने मुझे घुटने चेंज के लिए बोल दिया था और उसके बाद मैंने योग और वर्कआउट के थ्रू अपने शरीर को बहुत अच्छा बनाया और 15 किलोग्राम वजन भी घटाया।