काली मंत्र: अर्थ, महत्व और लाभ
- April 20, 2025
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Jagrat Times, Kanpur/ देवी काली पृथ्वी की दिव्य रक्षक हैं, जिन्हें हिंदू धर्म में कालिका के नाम से जाना जाता है। लेकिन देवी की विनाशकारी शक्ति के कारण
Jagrat Times, Kanpur/ देवी काली पृथ्वी की दिव्य रक्षक हैं, जिन्हें हिंदू धर्म में कालिका के नाम से जाना जाता है। लेकिन देवी की विनाशकारी शक्ति के कारण
Jagrat Times, Kanpur/ देवी काली पृथ्वी की दिव्य रक्षक हैं, जिन्हें हिंदू धर्म में कालिका के नाम से जाना जाता है। लेकिन देवी की विनाशकारी शक्ति के कारण उन्हें काली माता के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, काली शब्द संस्कृत शब्द काल से आया है, जिसका अर्थ है समय। इसलिए देवी काली समय, परिवर्तन, शक्ति, सृजन, संरक्षण और विनाश का प्रतिनिधित्व करती हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि काली शब्द का अर्थ “काला” है। यह संस्कृत विशेषण काला की स्त्री संज्ञा है। आध्यात्मिक ग्रंथों के अनुसार, देवी काली को दुर्गा/पार्वती का उग्र रूप और भगवान शिव की पत्नी माना जाता है। काली मां ब्रह्मांड की बुरी शक्तियों का नाश करने वाली होने के साथ-साथ, जो उनकी श्रद्धाभाव से पूजा करता है, उनके अच्छे कर्म के लिए अच्छे फल भी प्रदान करती हैं। अत: जो व्यक्ति मां काली की अत्यधिक भक्ति के साथ पूजा करते हैं, काली मां उनसे प्रसन्न होती हैं और उन पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखती हैं। साथ ही खूब आशीर्वाद भी देती हैं।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार, काली मां महान देवी की 10 महाविद्याओं या अभिव्यक्तियों में से पहली हैं। मां कली को आमतौर पर नृत्य करते हुए चित्रित किया जाता है या फिर वह अपने पति भगवान शिव के सीने पर एक पैर रखे खड़ी दिखाई जाती हैं। भगवान शिव अपनी पत्नी मां काली के पैर के नीचे शांत चित से लेटे नजर आते हैं। हमारे यहां काली मां की पूजा पूरे देश में की जाती है। नेपाल, श्रीलंका के साथ-साथ हमारे देश के कई हिस्सों में जैसे बंगाल, असम, कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, केरल और तमिलनाडु के कई भागों में यह पूजा की जाती है।
देवी काली ने सदियों से धर्म की रक्षा की और पाप करने वाले को नष्ट करने के लिए कई रूप धारण किए हैं। ज्योतिषियों का कहना है कि मां कालिका हिंदू धर्म में सबसे अधिक जागृत हैं और उन्होंने चार रूपों में पृथ्वी पर विचरण किया है – दक्षिणा काली, श्मशान काली, मां काली और महाकाली। इन सभी रूपों ने विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति की है, रक्षा वध से लेकर पृथ्वी और उसके मूल निवासियों के रक्षा करने तक।