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पंडित चन्द्रकान्त शुक्ला से जानिए! कैसे हुई मां कुष्मांडा की उत्पत्ति और कैसे करें प्रसन्न

  • April 1, 2025
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चतुर्थ दिवस: देवी की उत्पत्ति और पूजा पद्धति Jagrat Times, kanpur/ नवरात्रि के चतुर्थ दिन माता कूष्मांडा की उपासना की जाती है। यह दिन शक्ति की एक विशेष

पंडित चन्द्रकान्त शुक्ला से जानिए! कैसे हुई मां कुष्मांडा की उत्पत्ति और कैसे करें प्रसन्न

चतुर्थ दिवस: देवी की उत्पत्ति और पूजा पद्धति

Jagrat Times, kanpur/ नवरात्रि के चतुर्थ दिन माता कूष्मांडा की उपासना की जाती है। यह दिन शक्ति की एक विशेष स्वरूप की पूजा के लिए समर्पित है। माता कूष्मांडा को सृष्टि की आदि शक्ति माना जाता है, जिनके दिव्य तेज से सम्पूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई।

देवी कूष्मांडा की उत्पत्ति

पुराणों के अनुसार जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार था, तब माता कूष्मांडा ने अपनी मन्द मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की। इसलिए इन्हें “सृष्टि की आदिशक्ति” भी कहा जाता है। इनका निवास सूर्यलोक में माना जाता है और इन्हें तेजस्विता तथा ऊर्जा की देवी कहा जाता है।

देवी का स्वरूप

देवी कूष्मांडा अष्टभुजा धारी हैं, जिनके आठ हाथों में कमल, धनुष, बाण, अमृत कलश, चक्र, गदा और जपमाला होती है।

वे एक उज्ज्वल आभा से युक्त सिंह पर विराजमान होती हैं।

उनके द्वारा संपूर्ण ब्रह्मांड में ऊर्जा और प्रकाश का संचार होता है।

चतुर्थ दिवस की पूजा विधि

  1. प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. देवी की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थान पर स्थापित करें।
  3. सर्वप्रथम गणेश जी, कलश और नवग्रहों की पूजा करें।
  4. माता को सफेद फूल, कुमकुम, अक्षत (चावल), रोली और सुगंधित धूप अर्पित करें।
  5. माता को मालपुआ, दही और मिश्री का भोग अर्पित करें, यह उन्हें अत्यंत प्रिय है।
  6. सप्तशती या देवी स्तोत्र का पाठ करें और “ॐ कूष्माण्डायै नमः” मंत्र का जाप करें।
  7. आरती करें और माता से सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।
  8. ब्राह्मणों और कन्याओं को भोजन कराकर दान दें।

देवी कूष्मांडा की कृपा फल

मानसिक और शारीरिक बल की प्राप्ति होती है।

धन, ऐश्वर्य और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।

आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है और भय नष्ट होते हैं।

सूर्य से संबंधित दोष समाप्त होते हैं।

माता कूष्मांडा की आराधना से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आत्मबल की वृद्धि होती है।

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