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नवरात्रि में जानिए! शहर के प्रसिद्ध मंदिर और क्या है, इनकी मान्यता

  • March 29, 2025
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-दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं भक्त-तपेश्वरी और बारादेवी की अनोखी कहानी-कुष्माडा देवी के दर्शन मात्र से कटते हैं संकट-नीम के पेड़ से प्रकट हुई थी जंगली

नवरात्रि में जानिए! शहर के प्रसिद्ध मंदिर और क्या है, इनकी मान्यता

-दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं भक्त
-तपेश्वरी और बारादेवी की अनोखी कहानी
-कुष्माडा देवी के दर्शन मात्र से कटते हैं संकट
-नीम के पेड़ से प्रकट हुई थी जंगली देवी

Jagrat Times, कानपुर। रविवार यानी कल से नवरात्रि का शुभारंभ है। इन पावन दिनों में भक्त शहर के मंदिरों में पूजा-अर्चना के साथ मनोकामना मांगने आते है। सभी प्राचीन मंदिरों का इतिहास और मान्यता है। नवरात्रि में यहां के सभी मंदिरों में भक्तों का तांता रहता है। आइये आपको जानकारी देते है कि कौन सा मंदिर कितना पुराना है और किन मान्यताओं के लिए पूजा जाता है।

त्रेता युग का गवाह है तपेश्वरी मंदिर
बिराहना रोड स्थित तपेश्वरी मंदिर की अपनी मान्यता है। साल भर यहां भक्त विभिन्न स्थानोे से आते है और मां का आशीर्वाद लेकर जाते है। मंदिर का इतिहास पुराना है। कहते है यह मंदिर त्रेता युग में था। मां सीता ने अपने दोनों लव और कुष का मुंडर संस्कार इसी मंदिर में कराया था। भक्त इस मंदिर नवरात्रि दिनों में मंुडन संस्कार केे लिए आते है। ऐसी मान्यता है कि यहां मुंडन संस्कार होने से बच्चे के जीवन से काष्ट सदैव के लिए निकल जाता है।

1700 साल पुराना है बारादेवी मंदिर
दक्षिण स्थित बारादेवी मंदिर का इतिहास 1700 साल पुराना है। शहर का यही एक ऐसा मंदिर हैं जहां बारह देवियां विराजमान है। इसलिए इसका नाम बारादेवी मंदिर है। कहानी है कि यहां बारह बहनें रहने आयी थी। सेवा करते-करते सभी पत्थर की बन गयी तभी से इसका नाम बारादेवी पड़ गया। कहते है इस मंदिर में आने वाले हर भक्त की सभी कामना पूरी होती है। मंदिर में चुनरी बांधने का रिवाज है। मनोकामना के लिए चुनरी बांधी जाती है पूरी होने पर उसे खोला जाता है।

41 आरती में शामिल होने पर हर इच्छा पूरी
शास्त्रीनगर स्थित काली मठिया मंदिर का भी पुराना इतिहास है। यहां पर प्रतिदिन दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ जुटती है। भक्त यहां आरती का इंतजार करते है। ऐसी आस्था है कि जो भक्त यहां आकर 41 दिनों तक आरती में शामिल हो उसकी हर इच्छा मां काली पूरी करती है। इस मंदिर का इतिहास में 200 साल पुराना है।

हरी सब्जी के भोग वाला बुद्धा मंदिर
शहर के बीचोबीच हटिया में स्थित बुद्धा मंदिर का अपना ही इतिहास है। यहां पर मां की आरती के बाद मिठाई को भोग कम लगता है। यहां सिर्फ हरी सब्जियों का भोग मां को स्वीकार है। वैसे तो नारियल व चुनरी सभी चीजें भक्त लेकर आते है लेकिन हरी सब्जी प्रसाद में होना अनिवार्य है। नवरात्रि में भक्त अपनी मनोकामना लेकर बड़ी संख्या में आते है।

चार सौ साल पुराना है शुक्लागंज का दुर्गा मंदिर
मां गंगा के किनारे दूसरे छोर पर बना शुक्लागंज का दुर्गा मंदिर का भी इतिहास चार सौ साल पुराना है। यहां मां के दर्शनों के लिए प्रतिदिन भक्तों की भीड़ आती है, लेकिन नवरात्रि के दिनों में यहां पर अपनी मनोकामना लेकर विदेशों तक से लोग पहंुचते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां जो भी इच्छा लेकर भक्त आता है उसकी सभी मुुराद पूरी होती है।

कुष्मांडा देवी यहां पिंडी से निकलता है जल
घाटमपुर स्थित कुष्मांडा देवी मंदिर का इतिहास भी बहुत पुराना है। नवरात्रि के दिनों में यहां कई जिलों से लोग मां की आराधना करने आते है। मंदिर में मां स्वयं विराजमान है। यहां मंदिर की पिंडी से जल निकलता है। जो चमात्कार से कम नहीं है। नवरात्रि के चैथे दिन इनकी पूजा की जाती है। कहते है कुश्मांडा मां ने ब्राहम्ण की रचना की थी।

जंगल में विराजमान तो नाम पड़ा जंगली देवी
किदवईनगर स्थित जंगली देवी के मंदिर का भी इतिहास बहुत पुराना है। कभी घने जंगलों में आकर मां यहां बिराजमान हुई थी। इसलिए मंदिर का नाम जंगली देवी हो गया। यहां पर मान्यता है कि भक्त सच्चे मन से अपनी मनोकामना एक ईंट चढ़ाकर कर पुरी करा सकता है। 1400 साल पुराने मंदिर में विराजमान मां दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती है। कहते है मां नीम के पेड़ से प्रकट हुई थी।

गुफा में विराजमान हैं तीनों बहनें
दक्षिण के दमोदरनगर स्थित मां वैष्णों देवी का मंदिर भी भक्तों से भरा रहता है। जम्मू-कश्मीर की तरह यहां पर भी मां गुफा के अंदर विराजमान है। जो भक्त जम्मू ने जा सकते है वह यहां आकर दर्शन करते है। पिंडी के रूप में मां काली, सरस्वती और दुर्गा तीनों यहां पर विराजमान है। भक्त यहां पर दर्शन और मनोकामना के लिए आते है। कहते है मां के जयकारे के साथ जो भी भक्त की इच्छाहोती है मां उसे अवश्य पूरा करती है।

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