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होली पर चढ़ा महाकुम्भ का खुमार, रंगोत्सव के गीतों में पहली पसन्द बना प्रयागराज महाकुम्भ

  • March 11, 2025
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होली के फगुआ में चढ़ा योगी सरकार के महाकुम्भ 2025 का रंग मुख्यमंत्री योगी के दिव्य और भव्य आयोजन को मिले लोक संगीत के स्वर महाकुम्भ की धार्मिक

होली पर चढ़ा  महाकुम्भ का खुमार, रंगोत्सव के गीतों में पहली पसन्द बना प्रयागराज महाकुम्भ

होली के फगुआ में चढ़ा योगी सरकार के महाकुम्भ 2025 का रंग

मुख्यमंत्री योगी के दिव्य और भव्य आयोजन को मिले लोक संगीत के स्वर

महाकुम्भ की धार्मिक आस्था के मेल से तैयार हुई साफ सुथरी होली गीतों की माला

Jagrat Times, प्रयागराज । प्रयागराज के संगम तट आयोजित हुए महाकुम्भ की गूंज रंगों के पर्व होली पर भी सुनाई पड़ रही है। होली के पारंपारिक गीतों में महाकुम्भ मेला में श्रृद्धालुओं का रेला और योगी सरकार की तरफ से किए गए इसके भव्य आयोजन की बहुरंगी झलक को लोक कलाकारों ने अपने सुरों में पिरोया है जिसकी होली के गीतों के बाजार में धूम है।

फगुआ में चढ़ा प्रयागराज महाकुम्भ का खुमार
धार्मिक आस्था, अध्यात्म और लोक परम्परा के महापर्व प्रयागराज महाकुम्भ के समापन के बाद भी महाकुम्भ का खुमार कम नहीं हो रहा है। मस्ती और लोक आस्था के पर्व होली के गीतों में इस बार प्रयागराज महाकुम्भ की गूंज सुनाई पड़ रही है। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकेडमी से पुरस्कृत उदयचंद परदेशी ने होली के गीतों में सबसे अधिक इसे जगह दी गई है। उनके फगुआ ” महाकुम्भ भइल एहि बार बोलो ..सारारा, मोदी योगी की सरकार बोलो सरारा…” ने होली के गीतों के बाजार में धूम मचा रखी है। होली के इस फगुआ में महा कुम्भ में आने वाली 66 करोड़ से अधिक की सनातनी भीड़ से लेकर इस महा कुम्भ में बनाए गए सभी रिकॉर्ड का भी जिक्र है। उदय चंद परदेसी बताते हैं, प्रदेश की योगी सरकार ने लोक आस्था के महा पर्व महा कुम्भ को जो दिव्य और भव्य स्वरूप दिया उससे लोक गायक और लोक लेखक अपने आप को अलग नहीं रख सकता है क्योंकि वह भी उसी लोक का हिस्सा है। महाकुम्भ के समापन और होली के आगमन के बीच बहुत कम दिनों का अंतर है, ऐसे में इस महा आयोजन को शामिल किए बिना फगुआ अधूरा अधूरा लग रहा था। इसलिए उन्होंने अपने होली के लोक गीतों में इसे जगह दी है।

धार्मिक आस्था के मेल से तैयार हुई साफ सुथरी होली गीतों की माला
महाकुम्भ और होली का नजदीकी रिश्ता है। भारतीय लोक कला महा संघ के प्रदेश अध्यक्ष और फगुआ गायक कमलेश यादव कहते हैं कि महाकुम्भ का समापन महाशिवरात्रि के पर्व के साथ होता है और उसके पहले ही माघी पूर्णिमा से फाल्गुन लग जाता है। होली के गीतों फगुआ की शुरुआत भी तभी से हो जाती है। महा शिवरात्रि में भगवान शिव की बारात में फगुआ भी गाया जाता है। लोक गायक और होली गीतों के लेखक सूरज सिंह का कहना है कि लोक परम्परा में होली गीत 21 तरह के होते हैं। फाल्गुन माह में गाए जाने की वजह से इन्हें सामूहिक रूप से फगुआ कह दिया जाता है। लेकिन महाकुम्भ को लेकर जो होली गीत धूम मचा रहे हैं उसमें बेलवरिया, चैता, धमाल, चौताला, धमाल और उलाहरा शामिल हैं। लोक गायक कंचन यादव का कहना है कि होली के इन गीतों में स्तोभ “सारारा” का इस्तेमाल किया गया है जो कबीर पंथी और योग पंथी लोक परम्परा से जुड़ा है जिसमें जागीरा और कबीरा का इस्तेमाल होता है।

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