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जीटी रोड बाजार से बाहर जिलों तक जा रही होलिका

  • March 9, 2025
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-प्रहलाद और होलिका बनाने में जुटे कारीगर-सात से बीस फिट तक आर्डर पर तैयारी-एक माह पहले से चल रहा काम-300 आर्डर पर हो रहा काम-आसपास के जनपदों तक

जीटी रोड बाजार से बाहर जिलों तक जा रही होलिका


-प्रहलाद और होलिका बनाने में जुटे कारीगर
-सात से बीस फिट तक आर्डर पर तैयारी
-एक माह पहले से चल रहा काम
-300 आर्डर पर हो रहा काम
-आसपास के जनपदों तक जा रहे पुतले
-परिवार मिलकर एक दिन में बनाता है एक पुतला

सिटी डेस्क, कानपुर। होली का त्योहार की दस्तक होते ही बाजारों में होली का रंग चढ़ने लगा है। सबसे अधिक रौनक जीटी रोड यानी कि गोल चैराहा से जरीब चैकी क्रासिंग आने वाली रोड पर है। यहां रोड के किनारे दर्जनों परिवार एकजुट होकर होलिका और प्रहलाद को रंग-रोगन दे रहे है। कारीगरों की मानें तो यह सिलसिला एक माह पहले से चल रहा है। आसपास के जिलों के आर्डर होने के कारण दिन रात निर्माण का काम चालू है।
चार से बीस फिट तक के पुतले तैयार
कारीगर संजय ने बताया कि पुतला निर्माण में रेट हाइट पर निर्भर करता है। कम से कम हाइट चार फिट और अधिकतम बीस फिट तक होती है। पार्टियां जिस हाइट का आर्डर देती है उसी पर रेट होता है। अधिकतम सात से 10 फिट सामान्य है। लेकिन कुछ लोग अधिक हाइट का पुतला निर्माण कराते है। अधिकतम रेट की बात करे तो 1500 से 2000 तक दाम होता है।

आसपास के जिलों के 300 आर्डर
सुरेश कारीगर ने बताया कि यहां से कन्नौज, बिल्हौर, उन्नाव, फतेहपुर, कायमगंज सहित दर्जनों स्थानों पर पुतले आर्डर पर जाते है। आर्डर पूरा करने के लिए यहां पर एडवांस पैसा लेकर पुतला तैयार किया जाता है। काम अधिक होने के कारण दिन रात पुतले बनाएं जाते है। समय पर डिलीवरी देने के लिए काम एक माह पहले शुरू हो जाता है।
मिट्टी की होलिका मंहगी
निर्मला ने बताया कि लकड़ी वाली होलिका व प्रहलाद की अपेक्षा मिट्टी की मूर्तियां मंहगी होती है। लकड़ी का पुतला जहां 2000 में तैयार हो जाता है। वहीं, मिट्टी के पुतले निर्माण अधिक मेहनत होती है। इसलिए यह लगभग बीस से तीस हजार की कीमत में तैयारी होती है। शहर में मिट्टी वाले पुतलों की डिमांड कम है।
एडवांस तैयारी के बाद भी घटते हैं पुतले
कारीगर राम लखन बताते है कि एक माह पूर्व तैयारी में जुटने के बाद हर साल पुतलों की डिमांड अधिक होने के कारण घट जाते है। लेकिन अधिक संख्या में पुतले बनाकर रोड के किनारे रखा भी नहीं जा सकता है। माल कम बने वे तो चलता है लेकिन अगर अधिक बन गया तो लागत के साथ नुकसान भी तय है। साल भर उनको सेफ नहीं रखा जा सकता है।

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